शहीद बिरसा मुण्डा जी की जयंती 15 नवम्बर पर  कार्यक्रम आयोजित

नवलोक समाचार होशंगाबाद राज्य शासन के निर्देशानुसार  शहीद बिरसा मुण्डा जी की  जयंती 15 नवम्बर  के अवसर पर ऑडिटोरियम, गांधी  स्टेडियम के सामने इटारसी सहित सभी विकासखंडों में जनजातीय स्वाधीनता संग्राम सेनानियों के सम्मान में कार्यक्रम आयोजित किए गए । इटारसी में आयोजित कार्यक्रम में विधायक होशंगाबाद डॉ सीतासरन शर्मा, जिला पंचायत अध्यक्ष श्री कुशल पटेल, जनपद अध्यक्ष केसला श्री गणपत सिंह उइके , जिला पंचायत सीईओ श्री मनोज सरियाम, एसडीएम श्री मदन रघुवंशी एवं  विकासखंड पिपरिया में आयोजित कार्यक्रम में विधायक श्री  ठाकुरदास नागवंशी सहित गणमान्य नागरिक एवं जनजातीय समुदाय उपस्थित रहा।।  कार्यक्रम का प्रारंभ शहीद बिरसा मुंडा के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित कर किया गया। कार्यक्रम में सभी ने शहीद बिरसा मुण्डा जी द्वारा आज़ादी के लिए किए गए साहसिक संघर्ष को याद किया। विधायक श्री सीतासरन शर्मा ने शहीद बिरसा मुंडा जी  के द्वारा स्वाधीनता के लिए किए गए संघर्षों  व उनकी शोर्यगाथा से उपस्थित जनसमूह को अवगत कराया। जिला पंचायत अध्यक्ष श्री कुशल पटेल ने कहा कि देश के स्वाधीनता संग्राम में बिरसा मुंडा जी का योगदान अविस्मरणीय और प्रेरणादायी है। जिला पंचायत सीईओ श्री मनोज सरियाम  ने शहीद बिरसा मुंडा की जीवनी पर प्रकाश डाला।कार्यक्रम में सहायक आयुक्त श्रीमती चंद्रकांता सिंह, विकासखंड शिक्षा अधिकारी श्रीमती आशा मोर्य सहित अन्य अधिकारी एवं आमजन उपस्थित रहे।

  उल्लेखनीय है कि कार्यक्रम में लोगों को शहीद बिरसा मुंडा की शौर्यगाथा से अवगत कराया गया। लोगों को बताया गया कि सिंहभूम प्राचीन बिहार का वह भूभाग है जो वर्तमान में झारखंड के नाम से जाना जाता है, यहां की प्रमुख नगरी रांची 19वीं शताब्दी के अन्तिम दशक में बिरसा विद्रोह की साक्षी रही है। बिरसा उस महानायक का नाम है जिसने मुण्डा जनजाति के विद्रोह का नेतृत्व किया था।       एक इष्ट के रूप में पूजित बिरसा मुण्डा पूरे मुण्डा समाज के साथ- साथ देश के जनजातीय समाज की अस्मिता बन गये। बिरसा ने पूरे जंगलों की प्राणवायु को संघर्ष की ऊर्जा से भर, सबके जीवन का आधार बना दिया था। 15 नवम्बर, 1875 को जन्मे बिरसा मुण्डा के पिता सुघना मुण्डा तथा माता करनी मुण्डा खेतिहर मजदूर थे।    बिरसा बचपन से ही बड़े प्रतिभाशाली थे। कुशाग्र बुद्धि के बिरसा का आरंभिक जीवन जंगलों में व्यतीत हुआ। उनकी योग्यता देख उनके शिक्षक ने बिरसा को जर्मन मिशनरी स्कूल में भर्ती करवा दिया। इसकी कीमत उन्हें धर्म परिवर्तन कर चुकानी पड़ी। यहां से मोहभंग होने के बाद बिरसा पढ़ाई छोड़ चाईबासा आ गये। देश में स्वाधीनता की आवाज तेज होने लगी थी। बिरसा मुण्डा पुन: अपनी मूल जनजातीय धार्मिक परंपरा में लौट आये।    अंग्रेजों ने अपनी कुटिल नीतियों के द्वारा पहले जंगलों का स्वामित्व जनजातियों से छीना फिर बड़े जमीदारों ने जनजातियों की जमीन हड़पना शुरू की। इस अन्याय के विरूद्ध बिरसा मुण्डा ने ब्रिटिशों, क्रिश्चियन मिशनरियों, भूपतियों एवं महाजनों के शोषण व अत्याचारों के खिलाफ छोटा नागपुर क्षेत्र में मुण्डा जनजाति के विद्रोह (1899-1900) का नेतृत्व किया।     3 मार्च, 1900 को अंग्रेजों ने बिरसा को गिरफ्तार कर रांची जेल में बंद कर दिया। जेल में शारीरिक प्रताड़ना झेलते हुए 9 जून 1900 को बिरसा वीरगति को प्राप्त हो गये। बिरसा मर कर भी अमर हैं। छोटा नागपुर के जंगलों में आज भी बिरसा मुण्डा लोकगीतों में जीवित हैं।

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