इंदौर,। अब तक 21 सर्जरी हो चुकी है…21 और भी करानी पड़ी तो उनके होंठों की हंसी यूं ही कायम रहेगी। यह वादा है आर्थोग्राइपोसिस मल्टीप्लेक्स कंजेटिना डिसऑर्डर से पीड़ित 28 साल की प्राची अग्रवाल का। इस बीमारी की वजह से बचपन से ही उनकी कमर के नीचे की हड्डियां कमजोर और डिसलोकेट होने लगी थीं। सर्जरी के बाद भी उन्हें खड़े होने में परेशानी होती है। वे कहती हैं किसी भी दिव्यांग के लिए शारीरिक कमी से उबरने से ज्यादा मुश्किल मानसिक तौर पर खुद को तैयार करना है। इसलिए प्राची ने अपने जैसे मरीजों की मदद के लिए ऐसा क्लिनिक शुरू किया है जिसमें उन्हें मानसिक रूप से भी बीमारियों से उबरने की तरकीब बताई जाती है। प्राची की पैदाइश के वक्त ही मातापिता को पता चल गया था कि बच्ची आर्थोग्राइपोसिस मल्टीप्लेक्स कंजेटिना (एएमसी) डिसऑर्डर से पीड़ित है।
जिसके तहत कमर के नीचे की कई हडि्डयां खिसक थीं और मांसपेशियां बेहद कमजोर। बचपन से 18 साल की उम्र तक 21 सर्जरी हुईं और हर बार लंबे समय तक भीषण दर्द से गुजरना पड़ा।
माता-पिता और शिक्षकों से मिला हौसला : प्राची कहती हैं कि मुझसे कहीं ज्यादा परेशानी पैरेंट्स और परिवार को हुई। लेकिन उन्होंने कभी भी मुझे इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि मेरे इलाज की वजह से उन्हें किसी तरह की परेशानी हो रही है। उल्टे मां ने मेरा ये कहकर हौसला बढ़ाया कि जैसे पापा बुखार के इलाज के लिए अस्पताल गए थे वैसे तुम पांव का ठीक कराने यहां आई हो। लेकिन समस्या गंभीर थी जिसके कारण स्कूल में प्रवेश नहीं मिल रहा था। आखिरकार उस समय एक स्कूल की प्राचार्य लीला भान से मुलाकात हुई। जिन्होंने खुली बाहों से स्कूल में मेरा स्वागत किया और पढ़ाई में हर तरह की मदद करने के साथ-साथ मुझे हर तरह की गतिविधि में शामिल होने का हौसला और जज्बा दिया।
आईआईएम में चला रहीं ‘मेंटल हेल्थ वेलनेस प्रोग्राम’
प्राची कहती हैं, स्कूली शिक्षा के दौरान ही मैंने तय कर लिया था कि कुछ ऐसा करना है जिससे अपने जैसे दूसरे लोगों की मदद कर सकूं। इसलिए पढ़ाई खत्म होते ही मैंने मुंबई का रुख कर लिया। वहां के चार अस्पतालों में तीन साल काम करने के बाद वापस इंदौर इसलिए लौटी क्योंकि मुझे लगा कि मुंबई से ज्यादा मेरी जरूरत इंदौर में है।
यहां आकर हेल्थ क्लिनिक शुरू किया जहां हर मरीज का इलाज उसकी बीमारी के हिसाब से अलग-अलग किया जाता है। आईआईएम इंदौर में तीन सालों से ‘मेंटल हेल्थ वेलनेस प्रोग्राम’ चला रही हूं। हडि्डयों से जुड़ी दिक्कतें अब भी खत्म नहीं हुई हैं लेकिन बैसाखियों का सहारा पसंद नहीं है। इसलिए चलते-चलते कई बार गिर पड़ती हूं। इससे बचने के लिए स्पेशल शूज बनवाएं हैं। कुल मिलाकर परेशानियां खत्म नहीं हुई हैं। लेकिन इतना यकीन है कि अगर अभी 21 सर्जरी और करानी पड़ें तो भी मेरे होठों की हंसी कायम रहेगी।
Comments are closed.