गैस त्रासदी केे 34 साल / जज बदलते ही नए सिरे से सुनवाई, नतीजा- केस वहीं का वहीं

भोपाल . दो और तीन दिसंबर की दरम्यानी रात गैस त्रासदी का जो जख्म मिला वो आज भी भोपाल के लिए हरा ही है। वजह है-34 साल बीतने के बाद भी भोपाल के गुनहगारों को कोई सजा न मिलना। आज भी पीड़ितों को न्याय का इंतजार है।
7 जून 2010 को सीजेएम कोर्ट ने कुछ गुनहगारों को दो साल की जेल और जुर्माने की सजा सुनाई थी। फैसले के बाद एक तरफ सीबीआई ने गुनहगारों की सजा बढ़ाए जाने की एक अपील सेशन कोर्ट में लगाई तो दूसरी तरफ आरोपियों ने खुद को बेगुनाह बताते हुए बरी करने की अपील की। सेशन कोर्ट में अपील पेश हुए 8 साल बीतने को है। इस दौरान चार अलग अलग जज बहस सुन चुके हैं।

अब राजधानी में नए सत्र न्यायाधीश फिर इस मामले की शुरुआत से बहस सुनेंगे। जजों के ट्रांसफर होने पर नए जज आते हैं और शुरुआत से मामले की सुनवाई करते हैं। बड़ा सवाल यह है कि निचली अदालत से जो सजा सुनाई गई थी उस पर अमल कब और कैसे होगा। इसका जवाब किसी के पास नहीं है।

चौंकाने वाली एक और बात। गैस त्रासदी के आपराधिक मामले में निचली अदालत ने जिस शकील अहमद कुरैशी को दो साल की सजा सुनाई थी वह अब लापता है। सीबीआई पिछले तीन साल से उसकी तलाश कर रही है, लेकिन नतीजा सिफर। आपको बता दें कुरैशी दिसंबर 1984 में यूनियन कार्बाइड में गैस रिसने के समय रात की शिफ्ट में एमआईसी प्रोडक्शन यूनिट में ऑपरेटर था। 2010 के फैसले के वक्त वह आखिरी बार अदालत में देखा गया था।
नीदरलैंड की रूथ वाटरमैन ने गैस त्रासदी की प्रतीक के रूप में यह प्रतिमा बनाई। रूथ ने कोलकाता के फोटोग्राफर संजय मित्रा के साथ प्रभावित बस्तियों का दौरा करने के बाद यह प्रतिमा बनाई। प्रतिमा में गैस रिसाव के बाद एक महिला को बच्चे के साथ बदहवास भागते दिखाया है। इसके नीचे लिखा है- नो हिरोशमा, नो भोपाल … वी वान्ट टू लिव

2010… सीजेएम कोर्ट का फैसला

चार्जशीट में वारेन एंडरसन, केशुब महेंद्रा, विजय प्रभाकर गोखले, किशोर कामदार, जे मुकुंद, डॉक्टर आरबी राय चौधरी, एसपी चौधरी, केवी शेट्‌टी और एसआई कुरैशी के नाम थे। तत्कालीन सीजेएम मोहन पी तिवारी ने फैसला सुनाते हुए दो साल की जेल और जुर्माने की सजा सुनाई। आरोपियों ने जुर्माना जमा किया और निचली अदालत से उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया।

हेल्थ सर्वे रिपोर्ट : राजधानी में आम लोगों की तुलना में बीमारियों से 28 फीसदी ज्यादा गैस पीड़ितों की मौत हो रही है। इसमें बच्चे, महिलाएं और पुरुष शामिल हैं। 2015 से 2017 के बीच 17 हजार 250 बीमार लोगों को सर्वे के लिए चुना गया।

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इसमें 7 हजार 676 गैस पीड़ित थे। जबकि 9 हजार 574 आम लोग शामिल थे। गैस पीड़ितों में से 2 हजार 221 और अप्रभावित लोगों में 953 व्यक्तियों पर अध्ययन किया गया। इसके लिए वार्ड-13 और 20 को चुना गया। यह खुलासा शनिवार को संभावना ट्रस्ट द्वारा जारी की गई हेल्थ सर्वे रिपोर्ट में हुआ है।

प्रबंध ट्रस्टी सतीनाथ षडंगी ने बताया कि सर्वे में पाया गया कि इस दौरान जहां अपीड़ित लोगों की मृत्यु का आंकड़ा 49.3 फीसदी रहा वहीं 63.48 फीसदी गैस पीड़ितों की मृत्यु हुई, जो आम लोगों की तुलना में 28 फीसदी ज्यादा है।

साफ पानी नहीं

कारखाने के जहरीले कचरे से 35 कॉलोनियों का भूजल हुआ प्रदूषित : गैस त्रासदी के 34 साल बाद भी गैस प्रभावित बस्तियों में शुद्ध पेयजल की सप्लाई नगर निगम सुनिश्चित नहीं कर सका है। इतना ही नहीं यूनियन कार्बाइड कारखाना के जहरीले कचरे से भूजल भी प्रदूषित हो रहा है।

आलम यह है कि 5 साल में प्रदूषित भूजल वाली कॉलोनियों की संख्या 20 से बढ़कर 35 हो गई है। बावजूद इसकेे केंद्र और राज्य सरकार ने अब तक कारखाना के गोदाम आैर परिसर में बिखरे हुए जहरीले कचरे के निपटान की कार्रवाई शुरू नहीं की है। नतीजतन जहरीला कचरा बारिश के दौरान रिस-रिस कर जमीन के भीतर पहुंच रहा है।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च लखनऊ की रिपोर्ट के अनुसार कारखाना परिसर के पास स्थित 15 कॉलोनियों के रहवासियों के घर के बोरवेल से पानी के सैंपल लिए गए थे। इनमें से 15 में हैवी मैटल कैडमियम मिली है।

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