माया की चकाचौंध से प्रभावित होकर सांसारिक भोग विलास के प्रति आकर्षित होना बहुत सामान्य बात है। ज्यादातर लोग ऐसी ही जिंदगी जीने के सपने पालते हैं। लेकिन ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है जब कोई संपन्न व्यक्ति इस दुनियावी भोग विलास के जीवन को त्यागकर अध्यात्मिक जीवन में आगे बढ़ने के लिए वैराग्य को अपनाता है। हरियाणा के पानीपत की साल की मुमुक्षु सिमरन जैन ने संन्यास दीक्षा लिया साध्वी बन गईं। इससे पहले महावीर भवन से वर्षीदान वरघोड़ा निकाला गया।
बास्केटबॉल एरिना परिसर में सोमवार को जैन भगवती दीक्षा महोत्सव आयोजित हुआ। इसमें मुमुक्षु सिमरन जैन का दीक्षा महोत्सव हुआ। गौतममुनिजी ने दीक्षा के बाद मुमुक्षु सिमरन को नया नाम दिया साध्वी गौतमी श्रीजी मसा। जैसे ही उनके नए नाम की घोषणा हुई आयोजन स्थल दीक्षार्थी और जैन संतों के जयघोष से गूंज उठा।
‘इसलिए मैंने वैराग्य चुना’
दीक्षा से पहले मुमुक्षु सिमरन ने कहा, “दुनिया देखी और शिक्षा ग्रहण की लेकिन मुझे संतों का सान्निाध्य और दीक्षा का मार्ग ही रास आया। सांसारिक बुआ डॉ. मुक्ताश्री की राह पर ही आत्मिक सुकून और परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है, इसलिए वैराग्य धारण कर रही हूं। आप सब लोगों इसकी अनुमति मुझे प्रदान करें।
इससे पहले जब दीक्षार्थी सिमरन जैन आयोजन स्थल पर पहुंची तो सामने उनके खजूरी बाजार निवासी धर्म के नाना तेजप्रकाश जौहरी खड़े थे। वह उनसे मिली और मुस्कुराते हुए कहा, “नानू आज आखरी बार मुझसे खेल लो।” फिर नाना ने भी कंधे पर हाथ रखकर दीक्षार्थी सिमरन को अपना स्नेह जताया।
इसके बाद दीक्षा की विधि शुरू हुई जो करीब दो घंटे चली। यहां दीक्षार्थियों ने परिजन, समाज और साधु मंडल से दीक्षा की अनुमति ली। इसके बाद केशलोचन सहित विभिन्न दीक्षा की विधियां संपन्न हुई। दीक्षार्थी को ओगा सहित संयम के उपकरण दिए गए।
वरधघोड़ा निकला, सिमरन ने लुटा दीं सांसारिक वस्तुएं
श्री वर्धमान श्वेतांबर स्थानकवासी जैन श्रावक संघ ट्रस्ट के तत्वावधान में दीक्षा महोत्सव हुआ। ट्रस्ट के महामंत्री रमेश जैन, प्रकाश भटेवरा ने बताया सुबह करीब 8.30 बजे महावीर भवन से वर्षी दान वरघोड़ा निकला, जिसमें मुमुक्षु सिमरन बग्घी पर सवार होकर सांसारिक वस्तुएं लुटाते हुए चल रही थीं।
वरघोड़ा एमजी रोड, गांधी हॉल, यशवंत निवास रोड, रेसकोर्स रोड होते हुए बास्केटबॉल कॉम्प्लेक्स पहुंचा। इसमें भी बड़ी संख्या में समाज के लोग शामिल हुए। संघ अध्यक्ष नेमनाथ जैन ने दीक्षार्थी सिमरन के माता-पिता का सम्मान किया।
ट्रस्ट के अशोक मंडलिक ने बताया धर्मसभा को शीतल मुनि, सिद्धार्थ मुनि, वैभव मुनि, शालीभद्र मुनि ने संबोधित किया। समारोह में महासती पुनीत ज्योति, डॉ. मुक्ताजी, आदर्श ज्योति, प्रमोद कंवर आदि सहित लगभग 25 साध्वियां यहां उपस्थित थीं। समारोह में मुख्य अतिथि जैन कॉन्फ्रेंस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पारस मोदी एवं विशेष अतिथि जैन कान्फ्रेंस के पूर्व अध्यक्ष जेडी जैन, राष्ट्रीय मंत्री पुष्कर जैन आदि मौजूद थे। झंडावंदन मनमोहन जैन मुजफ्फर नगर ने किया।
छोटी बहन भी संयम के मार्ग पर
मुमुक्षु सिमरन के पिता अशोक गौड़ ने बताया कि मेरी दो बेटी और दो बेटे हैं। एक अन्य बेटी मेडिकल की पढ़ाई कर रही है। सिमरन ने बीएससी कम्प्यूटर साइंस की पढ़ाई की है। बेटी का विचार साध्वी बनने के लिए दृढ़ था। हमने उसे और पढ़ने को कहा था।
हमने सोचा पढ़-लिख कर करियर बनाएगी और हम उसकी शादी करेंगे लेकिन उसका मन संयम जीवन की ओर था। वहीं उनकी छोटी बेटी अंजलि की भी संयम जीवन अपनाने की इच्छा है। उनके पिता ने कहा हमारी ओर से बेटियों को अपना जीवन स्वयं की इच्छा के अनुसार जीने की स्वतंत्रता है।
‘संयम मिट्टी का खिलौना नहीं’
आयोजन के दौरान गौतममुनि महाराज ने प्रवचन में दीक्षा का महत्व बताया। श्रमण संघीय उपप्रवर्तक गौतममुनिजी ने कहा कि संयम कोई मिट्टी का खिलौना नहीं जो बाजार से खरीद ले। भौतिक चकाचौंध से संयम जीवन में आना मुश्किल है।
पु्ण्य से नगर सेठ बना जा सकता है लेकिन साधु बनने का मौका बहुत कम लोगों को मिलता है। साधु बनना सिर्फ वेश परिवर्तन नहीं, जीवन परिवर्तन है। वेश तो हम जन्मों से बदलते आ रहे हैं।
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