मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी ने सत्ता में बदलाव के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपने स्तर से सत्ता में बदलाव के लिए कोई भी कदम उठाने से नहीं हिचक रहे हैं। यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष की मदद में यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी भी आई हैं और उच्चपदस्थ सूत्रों बताते हैं कि पार्टी आंतरिक अनुशासन को बनाए रखने के लिए अपने वरिष्ठ नेताओं को लगातार आगाह कर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष का खुद भी मानना है कि म.प्र. में बदलाव चाहिए तो पहले कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया को मिलकर काम करना होगा।
बताते हैं कि यही कारण है कि कांग्रेस ने म.प्र., राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री का कोई चेहरा घोषित नहीं किया है। सभी के लिए विकल्प खुला रखा है। केवल चुनाव की जरूरत को देखते हुए राजस्थान में सचिन पायलट को तो म.प्र. में कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। संतुलन बिठाने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया और अशोक गहलोत को क्रमश: म.प्र. और राजस्थान में प्रचार अभियान का अध्यक्ष बनाया। वहीं दिग्विजय सिंह के पास न तो कोई पद है और न ही कोई निर्धारित काम।
सावधानी से चल रहे हैं कांग्रेस अध्यक्ष
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी काफी सावधानी से चल रहे हैं। वह किसी का भी पक्ष नहीं ले रहे हैं। न तो राजस्थान में सचिन पायलट का और न ही अशोक गहलोत का। इसी तरह से मध्य प्रदेश में भी वह न तो कमलनाथ के साथ आंख मूदकर हैं और न ही दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ। बताते हैं राहुल गांधी के इस रुख से कभी-कभी तीनों नेता खीझ भी रहे हैं और ‘सब वक्त है बदलाव का’ की थीम पर साथ काम करने पर मजबूर भी हैं।
कमलनाथ ने जमीनी नेता की पहचान बनाए रखते हुए जी जान लगा दी है। ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी को युवा नेता का कलेवर दे रहे हैं तो दिग्विजय सिंह अपनी राजनीतिक परिपक्वता के साथ संकट मोचक बने हैं। अरुण यादव ने शिवराज सिंह चौहान को उनके क्षेत्र में घेर रखा है। कुल मिलाकर पार्टी अपने नेताओं की एकजुटता से काफी गदगद है।

केन्द्रीय नेताओं की टीम ने डाला डेरा
मध्यप्रदेश में केन्द्रीय नेताओं की टीम ने डेरा डाल दिया है। मीडिया विभाग के प्रभारी रणदीप सुरजेवाला की टीम असली लड़ाई मप्र में लड़ रही है। दिव्या स्पंदना के नेतृत्व में सोशल मीडिया की टीम को धार देने की कोशिश हो रही है। इसी क्रम में आंतरिक वजहों से मप्र के सोशल मीडिया प्रभारी धर्मेन्द्र वाजपेयी को हटाकर सप्ताह भर पहले अभय तिवारी को लाया गया है। प्रियंका चतुर्वेदी मीडिया प्रबंधन से लेकर अन्य भूमिका में सक्रिय हैं। प्रियंका पार्टी की एक अच्छी प्रवक्ता हैं।
सांसद सुष्मिता देव, गुलाम नबी आजाद, मल्लिकार्जुन खडगे, कैप्टन अमरिंदर सिंह समेत तमाम नेताओं को लगाया गया है। हालांकि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व दीपक बावरिया को लेकर थोड़ा परेशान है। मप्र में दीपक बावरिया की भूमिका ठीक से समझ में नहीं आ रही है। बावरिया की भूमिका को लेकर कांग्रेस के नेता भी लगातार हाई कमान तक अपनी शिकायत भेज रहे हैं। दीपक बावरिया मप्र के प्रभारी हैं। कांग्रेस महासचिव हैं और उनसे कांग्रेस पार्टी के नेताओं को काफी उम्मीद है।
दिग्विजय ने जीता दिल
पूर्व कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह मप्र के बड़े नेता हैं। पार्टी ने अधिकारिक तौर से वहां विधानसभा चुनाव में कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी है, लेकिन दिग्विजय ने अपनी भूमिका चुनकर हाई कमान का दिल जीत लिया है। दिग्विजय सिंह ने राज्य में सत्ता परिवर्तन के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। टिकट वितरण के बाद नाराज कांग्रेसियों और बागियों को सिंह ने खुद ही पहल करते हुए मनाने का बीड़ा उठाया। इनमें तमाम उनके समर्थक भी थे।
कांग्रेस के नेता खुद मान रहे हैं कि यह दिग्विजय सिंह का काफी बड़ा काम है। उन्होंने बागियों को मनाने में बड़ी सफलता पाई है, जबकि भाजपा में बागी मुसीबत बने हुए हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि यदि कांग्रेस की सरकार बनी तो इसका कारण टिकट वितरण, बागियों पर लगाम और शीर्ष नेताओं में तालमेल तथा भाजपा के बागी होंगे।
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