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शिवराज ने बनाया टेक्स को लूट का साधन

नवलोक समाचार. लोकतंत्र में सरकार जनता के लिये बनती है। भारत मंे प्रारंभ से ही जनकल्याणकारी राज्य की अवधारणा चलती आयी है। देश के इतिहास में पहली बार केंद्र और प्रदेशांे में भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने एक ऐसा माॅडल प्रस्तुत किया है, जिसकी प्राथमिकता आम जनता और गरीबों के हक के पैसों पर डाका डालकर उसे ऐसे चुनिंदा लोगों पर लुटाना है, जिनका पेट सरकारी व्यवस्था के छिद्रों से निकले हुए देश के धन को खा-खा कर गले-गले तक भरा है।

पिछले सप्ताह ही नोटबंदी की दूसरी वर्षगांठ पर सामने आया कि मोदी जी जिसे देश को बदलने वाला निर्णय बता रहे थे, उसके दर्द से मध्यप्रदेश का गरीब और किसान अभी तक उबर नहीं पाया है। आज दो साल के बाद भी मंदसौर के जिस किसान ने लगातार चार दिन तक बैंक की लाईन में खडे़ रहकर अपने ही पैसे को निकालने में असफल होने के बाद आत्महत्या कर ली थी, उसका परिवार भारतीय जनता पार्टी की सरकार से जवाब मांग रहा है। मध्यप्रदेश के पिछड़े जिलों दमोह, पन्ना, सतना, शहडोल, झाबुआ, अलीराजपुर, बड़वानी, बालाघाट और बैतूल आदि जहां का व्यक्ति अपने रोजगार की तलाश में दिल्ली, पंजाब, मंुबई जैसे स्थानों पर जाता था, उसमें से लगभग तीस प्रतिशत आज तक अपना रोजगार वापस नहीं पा सका है। मध्यप्रदेश की जनता भी देश की जनता की तरह ही मोदी जी को बुलावा भेज रही है कि वो भोपाल के किसी भी चैराहे पर आकर नोटबंदी हिसाब-किताब दें।

जिस तरह से भूकंप आने पर बड़ी-बड़ी इमारते धराशायी हो जाती हैं, उसी तरह से भारतीय जनता पार्टी की नीतियों के चलते देश का आर्थिक ढांचा धराशायी हो गया है। जिस जीएसटी को एक देश एक कर के सिद्धांत पर लागू किया जाना चाहिए था, वह न तो करों का सरलीकरण कर पाया और न ही व्यापार और व्यवसाय को आसान बना पाया। मध्यप्रदेश के व्यापारी भी पूरे देश के व्यापारियों की तरह रिर्टन फाईल करने और टैक्स नियमों का कम्पलाईंस करने की जटिल प्रक्रिया से पीड़ित हैं। जिस कर प्रणाली में अधिकतम टैक्स 18 फीसदी का होना चाहिए था, उसे भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने गब्बर सिंह टैक्स बनाकर 28 फीसदी तक का बोझ लाद दिया। कैसा मजाक है कि आम उपभोक्ता अगर 100 रूपये की वस्तु खरीदता है तो उसके एक चैथाई से ज्यादा हिस्सा यानि 28 रूपये टैक्स के रूप में देना पड़ता है। हालात यह है कि यदि ई.बे. बिल में लिखा-पढ़ी की सामान्य सी गलती हो जाये तो भेजे जा रहे सामान पर मनमानी पैनाल्टी लगायी जा रही है, जिसे मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में भाजपा की सरकारों ने पैसा जुटाने का साधन बना लिया है। ये एक तरह से सरकार द्वारा की जाने वाली लूट है।

देश ने यह भी देखा कि इसी सरकार के कार्यकाल में पहले ललित मोदी फिर नीरव मोदी, फिर प्रधानमंत्री जी के भाई कहलाने वाले मेहुल चैकसी और ऐसे ही कई दूसरे देश के हजारों करोड़ रूपये लेकर भाग गये। विदिशा की जनता सुषमा स्वराज जी से जरूर पूछ रही होगी कि किस मानवीय आधार पर आपने ललित मोदी को देश से भागने का मौका दिया। क्या सारे अपराधियों पर यही मानवीय आधार लागू होगा?

वास्तव में आर्थिक अपराधियों को देश से भगाने की शुरूआत विदिशा की सांसद सुषमा स्वराज जी की चिट्ठी से ही हुई। क्या मध्यप्रदेश ने उन्हें इसलिए चुनकर भेजा था।

अकेले मोदी जी और जेटली जी की सरकार ने ही बैंकों के हजारों करोड़ रूपये लेकर विजय माल्या जैसो को नहीं भगाया, बल्कि शिवराजजी ने भी जनता के पैसों पर अपना साम्राज्य खड़ा करने वालों को सम्मानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बैंकों के 35 करोड़ रूपये के बिलफुल डिफाल्टर सुरेन्द्र पटवा को मंत्री भी बनाये रखा और फिर टिकिट भी दिया।

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