
2018 चुनावों के नतीजों का इशारा, जनता का मूड बदल रहा है
राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में जहां भाजपा सरकार थी वहां अब कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है. मिज़ोरम कांग्रेस के हाथ से फिसल गया है और तेलंगाना में मौजूदा मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीएसआर) ने भारी बहुमत हासिल कर लिया है.
तेलंगाना ही एकमात्र राज्य है जहां जनता ने मौजूदा टीएसआर को एक बार फिर सत्ता में आने का मौक़ा दिया है. नया राज्य बनने के बाद हुए पहले विधानसभा चुनावों में भी टीआरएस को बहुमत मिला था.
2014 के चुनावों में कुल 119 सीटों में से टीआरएस ने 63 सीटें जीती थी, जबकि कांग्रेस को 21 सीटें मिली थीं. इस साल हुए विधानसभा चुनावों में टीआरएस को 88 और कांग्रेस को 19 सीटें मिली हैं. लेकिन बीजेपी को ज़्यादा बड़ा धक्का लगा है. पिछले चुनाव में बीजेपी के पास पांच सीटें थीं लेकिन इस बार वो केवल एक सीट ही जीत पाई.
संदेश एकदम स्पष्ट है, भाजपा का समर्थन लगातार कम हो रहा है.
कांग्रेस से पक्ष में बन रही है लहर
बीते विधानसभा चुनाव और इस बार के विधानसभा चुनावों में मत प्रतिशत में जो बदलाव दिखा है उसे किसी एक पार्टी के पक्ष में स्विंग की तरह देखा जा सकता है और इस बार ये कांग्रेस के पक्ष में है.
इस तरह का स्विंग चुनावों में तभी देखनो को मिलता है जब कोई लहर हो.
राजस्थान और मध्यप्रदेश में अभी के वोट शेयर को देखें तो कहा जा सकता है कि इससे ये साबित नहीं होता कि ऐसी कोई लहर है. चुनाव प्रचार के दौरान कई राजनीतिक विश्लेषकों ने इस बात की ओर साफ़ इशारा किया था. लेकिन इन राज्यों में कांग्रेस के वोट शेयर में जो बढ़ोतरी हुई है वो साफ़-साफ़ बताती है कि यहां लहर तो थी.
तेलंगाना में कांग्रेस ने टीडीपी और श्रेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन किया लेकिन यहां पार्टी के पक्ष में इस तरह की कोई लहर तैयार नहीं हुई थी.
मिज़ोरम में भी कांग्रेस का पलड़ा कमज़ोर ही रहा. ये बताता है कि दक्षिण और उत्तरपूर्व में कांग्रेस जनता का मूड बदलने में नाकामयाब रही.
तीन हिंदी भाषी राज्यों यानी राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी भाजपा के विरोध में एक स्विंग बनाने में कांग्रेस के कामयाब होने के कई कारण हैं.
राजस्थान में सबसे अहम कारण था कि यहां भाजपा की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के ख़िलाफ़ सत्ता विरोधी लहर थी और मध्यप्रदेश में सत्ता विरोधी लहर केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों के ही ख़िलाफ़ थी, हालांकि इसका स्तर बहुत बड़ा नहीं था.
ऐसा लगता है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में किसानों से जो वायदे किए थे उसका फ़ायदा उसको मिला.
इन तीनों राज्यों में और देश के अन्य राज्यों में भी किसानों की नाराज़गी स्पष्ट थी और कांग्रेस नाराज़ सभी राज्यों में किसानों के बीच अपनी जगह बनाने में कामयाब और सबसे बड़ी सफलता उसे मिली छत्तीसगढ़ में.
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