जातियों की लड़ाई में विरासत बचाने का संघर्ष

रीवा  नवलोक समाचार.  शहर के बीचों-बीच स्थित बघेल राजवंश के मशहूर किले में पुष्पराज सिंह राजनीतिक गुणा-भाग बताकर मुझे यकीन दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि क्यों कांग्रेस का पलड़ा इस चुनाव में भारी है। “भाजपा इसलिए कमजोर है क्योंकि कांग्रेस की सारी बीमारियां वहां चली गई हैं।” वे कहते हैं। पुष्पराज सिंह कांग्रेस पार्टी के नेता तो हैं ही, रीवा राजघराने की 36वीं पीढ़ी के वारिस भी हैं। कांग्रेस के टिकट पर तीन बार चुनाव जीतकर वे दिग्विजय सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं।
रीवा देश के पॉलिटिकल राजघरानों में से एक है और विंध्य की यह सबसे बड़ी रियासत कभी 34,000 वर्ग किमी में फैली थी। इस चुनाव में पुष्पराज के पुत्र और सिरमौर से भाजपा विधायक दिव्यराज सिंह फिर से चुनाव लड़ रहे हैं। इनका परिवार तीन पीढ़ियों से राजनीति में है। दिव्यराज के बाबा महाराजा मार्तंड सिंह तीन बार कांग्रेस के सांसद रहे। दादी ने भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था। पिता पुष्पराज ने दस साल पहले कांग्रेस छोड़ी थी। भाजपा और समाजवादी पार्टी के रास्ते दो महीने पहले ही उनकी घर वापसी हुई। वे बेटे की पॉलिटिक्स से इत्तेफाक नहीं रखते, पर गर्व से बताते हैं कि उनकी बेटी मोहिना भी अपने भाई के प्रचार के लिए आने वाली है। मोहिना हिंदी टीवी सीरियलों की कलाकार हैं और एक रियलिटी शो में डांस करने वाली पहली राजकुमारी के रूप में विख्यात हैं।

राजघराने के ग्लैमर में बॉलीवुड का तड़का भी इस दफा दिव्यराज की ज्यादा मदद कर पाएगा, लोगों को इसमें शक है। उनका मुकाबला विंध्य के व्हाइट टाइगर कहलाने वाले श्रीनिवास तिवारी के खानदान से है। कांग्रेस ने तिवारी के पोते की पत्नी अरुणा तिवारी को मैदान में उतारा है। उसे लगा कि राजनीतिक विरासत, तिवारीजी की मृत्यु के बाद लोगों की सहानुभूति और महिला होने का फायदा अरुणा को मिलेगा। उससे भी ज्यादा ब्राह्मण होने का फायदा। भाजपा के उम्मीदवार क्षत्रिय हैं। विंध्य में ब्राह्मणों और ठाकुरों में परंपरागत राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता रही है। सिरमौर के नरेन्द्र गौतम कहते हैं- “इनमें सांप-नेवले की लड़ाई है। ऐसे तो पांय लगी पंडितजी करेंगे, जय महाराज कुमार करेंगे, पर राजनीति में दोनों दुश्मन हैं।”

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ब्राह्मण-बाहुल्य क्षेत्र होने के बावजूद “राजा नहीं, फकीर है” के नारे पर पिछला चुनाव जीतने वाले युवराज के समीकरण गड़बड़ा गए हैं, समाजवादी पार्टी के धाकड़ नेता प्रदीप सिंह पटना के मैदान में उतरने से। प्रदीप ठाकुर तो हैं ही भाजपा से भी चुनाव लड़ चुके हैं। माना जा रहा है कि ठाकुर और भूतपूर्व भाजपाई होने की वजह से वे दिव्यराज के वोट काटेंगे। विंध्य की नई राजनीतिक संस्कृति के ध्वजवाहक प्रदीप घाट-घाट का पानी पी चुके हैं। (2008 में बसपा से भाजपा, फिर दस साल बाद समाजवादी पार्टी में)। विंध्य के लोग जानते हैं कि जाति की गोटियां कैसे फिट की जाएं। सिरमौर से लगभग एक दर्जन ब्राह्मण उम्मीदवार मैदान में कूद पड़े हैं। अगर कल तक उन्होंने नॉमिनेशन वापस नहीं लिए तो नुकसान अरुणा को
ही होगा।

गौतम इसे खूबसूरती से बताते हैं- “ये अगर गरीबी रेखा में भी आये और हजार-हजार वोट ही पाए, तो भी 12 हजार ब्राह्मण वोट कट जाएंगे।” सिरमौर की लड़ाई कठिन हो गई है और दिलचस्प भी। यह मुकाबला दिखा रहा है कि क्या होता है जब विरासत महत्वपूर्ण हो जाती है, पार्टी गौण और जाति सर्वोपरि। विकास? वह किस चिड़िया का नाम है!

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