उज्जैन। विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और नई सरकार शपथ लेने वाली है। धर्मनगरी इस चुनाव को हमेशा याद रखेगी। दरअसल दोनों की पार्टियों ने अपना चुनावी शंखनाद महाकाल की नगरी से किया। चुनाव के दौरान कई प्रमुख सियासी गतिविधियां ज्योतिर्लिंग के आसपास घुमती रही। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह 2013 की तर्ज पर इस बार भी उज्जैन से जन आशीर्वाद यात्रा लेकर निकले। महाकाल मंदिर में जीत की मुराद मांगी।
कमलनाथ ने पाती के माध्यम से महाकाल से सरकार बदलने की प्रार्थना की। दोनों दलों के आला नेता अमित शाह, राहुल गांधी आदि ने यहां सभाएं ली और अवंतिकानाथ के दरबार मत्था टेका। कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व समीकरण की झलक भी उज्जैन में देखने को मिली। सभाओं में मंदिर की व्यवस्था और शिप्रा के मैले पानी जैसे मुद्दे उठे। आखिर में ‘राजा” ने जनता की ही सुनी। ‘नईदुनिया’ की फ्लेश बैक रिपोर्ट-
अवंतिकानाथ से फिर मांगा आशीष मगर
1998 के बाद 2003 में सत्ता परिवर्तन का ध्येय लेकर उमा भारती के नेतृत्व में चुनावी में उतरी भाजपा ने महाकाल की नगरी से ही शंखनाद किया था। इसके बाद 2013 में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने महाकाल से प्रार्थना कर ‘जन आशीर्वाद’ यात्रा निकाली। हालांकि उस समय यात्रा को हरी झंडी सुषमा स्वराज ने दिखाई थी। 2013 के चुनाव में भाजपा प्रचंड बहुमत लेकर सत्ता में आई। 2018 आते-आते पार्टी में कई परिवर्तन हो चुके थे। एक बार फिर चुनावी साल 2018 में 14 जुलाई को जन आशीर्वाद यात्रा की शुरुआत उज्जैन से हुई। राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और शिवराजसिंह चौहान दोनों मौजूद रहे। दोनों नेता महाकाल मंदिर गए और जीत के लिए पूजा-अर्चना की। मगर जनता को इस बार कुछ और मंजूर था।
कमलनाथ के पत्र ने सुर्खियां बंटोरी
6 महीने पहले तक सूबे में कांग्रेस बिखरी हुई नजर आ रही थी। मगर कमलनाथ के अध्यक्ष बनते ही समीकरण भी बदलते गए। अध्यक्ष बनने के बाद और सीएम की जन आशीर्वाद यात्रा से ठीक पहले यानी 13 जुलाई 2018 को कमलनाथ ने एक पत्र महाकाल के नाम लिखा। इसमें प्रार्थना की गई कि प्रदेश सरकार अब बदलना चाहिए। कई कारण भी गिनाए। पाती जब मंदिर पहुंची तो एक अलग दृश्य नजर आया।
पहली बार जिले के कांग्रेस नेता एक साथ दिखे। सभी अपने अध्यक्ष के पत्र लेकर गर्भगृह तक गए और पूजा-अर्चना की। खुद कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया भी दो से तीन बार महाकाल मंदिर पहुंचे। सावन में निकलने वाली शाही सवारी में भी सिंधिया शामिल हुए। कमलनाथ के आने के बाद स्थानीय नेताओं के एकजुट होने का लाभ भी पार्टी का जिले में मिला और पार्टी ने जीत दर्ज की।
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