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रंगभरी ग्‍यारस पर देवी शिवानी को मायके लिवाने पहुंचे सैकड़ो आदिवासी

नवलोक समचार सोहागपुर. होली के ठीक पहले  क्षेञ के आदिवासी समुदाय के लोगो रंगभरी ग्‍यारस मनाई, जिसके चलते लोगो ने एकजुट होकर रंग गुलाल अबीर उडाते हुये स्‍थानीय शिवालय तक शोभायाञा निकाली. शिवालय पहुंचकर आदिवासी समुदाय के लोगो ने देवी पार्वती के मायके वाले बनकर देवी को अपने साथ मायके ले जाने की रश्‍म निभाई. देवी शिवानी के लिवउआ बनकर पहुंचे आदिवासी समाज के लोगो ने पहले भगवान भोलेनाथ को ञिशूल भेट किया, उसके बाद देवी पार्वती को अपने साथ मायके ले जाने की अनुमति भी मांगी. मान्‍यता है कि विवाह के पश्‍चात बेटी या बहन का पहला त्‍योहार मायके में मनाया जाता है उसी परंपरा को जीवंत रखते हुये आदिवासी समुदाय के लोग शिवालय पहुंचे.

बता दें कि आदिवासी समुदाय देवी पार्वती को अपनी बहन और बेटी का दर्जा देता है और भगवान शिव को दामाद का, जिसके चलते महाशिवराञि पर भगवान शिव और देवी शिवानी के विवाह के बाद आने वाले होली पर्व को देखते हुये आदिवासी समुदाय ने भगवान शिव के पास पहुंच कर देवी पार्वती को अपने साथ मायके ले जाने की प्रार्थना की. माना जाता है विवाह के बाद पहला त्‍योहार बेटी अपने मायके में मनाती है, उसी परंपरा का निर्वहन करते हुए आदिवासी समुदाय ने

रश्‍म को निभाते हुए पार्वती जी के मायके वाले बनकर उन्‍हे घर ले जाने शिवालय पहुंचे. आदिवासी समाज के विक्रम परते ने बताया कि आदिवासी समुदाय के आराध्‍य बूढा देव यानि भगवान शंकर है, और देवी पार्वती को आदिवासी समुदाय अपनी बहन और बेटी के रूप में मानता है, महाशिवराञि के दिन शिव और पार्वती का विवाह सम्‍पन्‍न होने के बाद आने वाली ग्‍यारस को रंग गुलाल अबीर खेलते हुए रंग भरी ग्‍यारस मनाई जाती है, साथ ही शिव मंदिर पहुंच कर आदिवासी समाज भगवान शिव को भेंट देकर देवी पार्वती को उनके मायके ले जाने की अनुमति मांगता है. उधर आदिवासी समाज के वरिष्‍ठ कैलाश उइके ने बताया कि यह परंपरा प्राचीन काल से सतत चली आ रही है, जिसका निर्वहन हम सभी लोग करते आ रहे है. देवी पार्वती के मायके वाले बनकर सैकड़ो की संख्‍या में महिला और पुरूष शिवालय पहुंचे.

 

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