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अब बेवजह मरीजों को एंटीबायोटिक दवा नहीं लिख सकेंगे डॉक्टर, प्रदेश में लागू हुई नई पॉलिसी

सागर। एंटीबायोटिक दवाइयों का इन दिनों धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है, जबकि विशेषज्ञों की माने तो 90 प्रतिशत बीमारियों में इसकी जरूरत नहीं होती। इसके बावजूद भी सर्दी, जुकाम, खांसी, दस्त और बुखार जैसी बीमारियों में डॉक्टर 15-15 दिन तक के एंटीबायोटिक डोज लिख देते हैं। जिसका सीधा असर मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ता है।
लेकिन अब इस लापरवाही पर लगाम कसने के लिए भारत सरकार और डब्ल्यूएचओ ने मिलकर एंटीबायोटिक पॉलिसी बनाई है, जिसे प्रदेश के कई अस्पतालों में लागू भी कर दिया गया है। गाइड लाइन में किन बीमारियों में एंटीबायोटिक जरूरी है और किन बीमारियों में नहीं यह बात निर्धारित की गई है।

डॉक्टरों को दिया जा रहा प्रशिक्षण : एंटीबायोटिक पॉलिसी लागू करने के साथ अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स भोपाल ने डॉक्टरों को प्रशिक्षण देने का जिम्मा उठाया है। जिसके चलते भोपाल एम्स में प्रदेशभर के सरकारी अस्पतालों में काम कर रहे डॉक्टरों को ट्रेनिंग देने की कवायद चल रही है। जिसमें एंटीबायोटिक कब, कितना और कितने अंतराल में दिया जाए, यह बताया जा है। वहीं अगले चरण में मेडिकल ऑफिसर्स को भी यह ट्रेनिंग दी जाएगी।

यह होती है परेशानी

बीएमसी के डीन डॉ. जीएस पटेल ने बताया कि मरीज को एंटी बायोटिक बीमारी के संक्रमण को खत्म करने के लिए दी जाती है। लेकिन, मरीज शुरुआती इलाज से राहत मिलने पर दवाएं खाना बीच में बंद कर देता है।
बीमारी बढ़ने पर मरीज दोबारा पहले डॉक्टर से बिना सलाह लिए एंटीबायोटिक दवाएं लेना शुरू कर देता है। इस स्टेज में मरीज के शरीर में मौजूद बैक्टीरिया ड्रग रेजिस्टेंट हो जाता है। मल्टी ड्रग रजिस्ट्रेंस टीबी, एंटी बायोटिक दवाओं का अधूरा कोर्स छोड़ने के कारण ही होती है। वजह एंटीबायोटिक ज्यादा खाने से रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना है।
कुछ समय पहले एम्स दिल्ली और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने एंटीबायोटिक के असर पर एक शोध किया था। शोध के मुताबिक बेतहाशा उपयोग से एंटीबायोटिक का असर या तो खत्म हो चुका है या कम हो गया है। हालांकि राहत की बात यह है कि पुराने एंटीबायोटिक जिनका उपयोग कम हो रहा है, वे फिर से प्रभावी हो गए हैं।

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