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सांची में अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन 17 दिसंबर से आयोजित

राजू प्रजापति

रायसेन। तंत्र और श्रीविद्या परंपरा पर पहला अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन
• 17-19 दिसंबर, 2018 को सांची विवि में जुटेंगे देश-विदेश से विद्वान
• 34 विदेशी विद्वानों सहित 130 भारतीय विद्वत्-जन प्रस्तुत करेंगे शोध पत्र
• वैदिक और बौद्ध परंपराओं का प्रतिनिधित्व करता है शाक्त तंत्र
• शाक्त तंत्र पर आधारित है मोक्ष मार्ग की श्रीविद्या परंपरा
भुक्ति और मुक्ति के साथ जागतिक समृद्धि और मोक्ष मार्ग बताने वाली शाक्त तंत्र और श्रीविद्या भारतीय एवं बौद्ध दर्शन की सर्वाधिक पुरानी परंपराओं में से एक है। सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में “शाक्त तंत्र एवं श्रीविद्या” पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन 17-18-19 दिसंबर को हो रहा है। शाक्त तंत्र पर केंद्रित अपनी तरह के पहले आयोजन में विभिन्न देशों के 34 विदेशी विद्वान शामिल होंगे। लगभग 130 भारतीय विद्वान भी शाक्त तंत्र के विभिन्न विषयों पर शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे।
शाक्त तंत्र की परंपरा भारत में काफी पुरानी है क्योंकि यह भारतीय एवं बौद्ध दर्शन की सर्वाधिक पुरानी परंपराओं का प्रतिनिधित्व करती है जो पॉंच हजार वर्षों से प्रचलित है। शाक्त तंत्र में वैदांतिक परंपरा के शाश्वत दर्शन शामिल हैं जो दर्शन और अभ्यास का मिला-जुला रूप है। शाक्त तंत्र के द्वारा साधक समृद्धि और आनंद के माध्यम से पीड़ा और दुखों से मुक्ति पा सकता है।
ब्रह्माण्ड का विज्ञान समझी जाने वाली श्री विद्या समस्त विज्ञानों की श्रेष्ठतम उपलब्धि मानी जाती है और यह स्वयं को समझने का विज्ञान है। श्रीविद्या परंपरा भक्ति और ज्ञान का वह आत्मिक मार्ग है जिसमें मातृशक्ति की पहचान द्वारा मनुष्य को स्वज्ञान प्राप्त होता है। शाक्त तंत्र की सर्वाधिक लोकप्रिय श्रीविद्या का अभ्यास करने वाले विद्वान मानते हैं कि इसकी सही समझ, ज्ञान एवं अनुष्ठान के माध्यम से योग की प्राप्ति की जा सकती है। श्रीविद्या परंपरा द्वारा किया जाने वाला योग मनुष्य के लिए मोक्ष की प्राप्ति का साधन बनता है जो मानव जीवन का परम लक्ष्य है।
शाक्त तंत्र की श्रीविद्या पद्धति का ज्ञान और महत्व विश्व में बहुत कम लोगों को है और इसकी शक्ति और कल्याण के ज्ञान को लोगों के मध्य साझा करने के उद्देश्य से अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, फिनलैण्डी, बैल्जियम, कोरिया, श्रीलंका एवं नेपाल से विद्वान शामिल हो रहे हैं। सम्मेलन में बैल्जियम के इंडोलॉजिस्ट कोर्नाड इलेस्ट,कनाडा से प्रो अरविंद शर्मा, गोवा से सद्गुरु ब्रह्मेशानन्द जी, स्वा मी परमात्माानन्द् सरस्वेती, स्वाीमी आध्या्त्मा नन्दर, हरिप्रसाद स्वािमी, महाबोधि सोसायटी के वेन. बनगला उपतिस्‍‍‍‍सा नायक थैरो, मुंबई से श्याम मनोहर गोस्वामी, महामहोपाध्याय एस रंगनाथन, प्रो ए के वी कृष्ण अैय्यर, गोवा विवि के गोरखनाथ मिश्रा और प्रो गोदावरीश मिश्रा जैसे विद्वान पहुंच रहे हैं।
सम्मेलन के दौरान 17 दिसंबर को शाम 6 बजे केरल के केवलम श्रीकुमार पनिक्कर का शास्त्रीय गायन होगा एवं शाम 7 बजे बैंगलोर की डॉ. पद्मजा सुरेश, भरतनाट्यम की प्रस्तुयति देंगी। 18 दिसंबर को शाम 6 बजे कर्नाटक के पंडित गनपति भट्ट हसनागी हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत प्रस्तुत करेंगे।
इस सम्मेलन हेतु सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय को संस्कृति विभाग मध्य प्रदेश सरकार, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR), भारतीय दर्शन अनुसंधान परिषद (ICPR), भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) से भी सहयोग प्राप्त हुआ है।

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