नई दिल्ली. सरकार वित्त वर्ष को अप्रैल-मार्च की बजाय जनवरी-दिसंबर कर सकती है। 1 फरवरी को अंतरिम बजट में इसका ऐलान किया जा सकता है। न्यूज एजेंसी कॉजेन्सिस ने सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी है। अप्रैल से मार्च तक वित्त वर्ष की परंपरा 152 साल पुरानी है। यह 1867 से जारी है। विश्लेषकों को कहना है कि वित्त वर्ष में बदलाव होने से देश को फायदा होगा। हालांकि, शुरुआत में कारोबारियों को थोड़ी बहुत दिक्कतें आ सकती हैं।
वित्त वर्ष बदलने से क्या असर होगा ?
सरकार और वित्तीय संस्थान वित्त वर्ष के हिसाब से ही चलते हैं। आम बजट भी वित्त वर्ष को ध्यान में रखते हुए फरवरी के महीने में पेश किया जाता है। लेकिन, वित्त वर्ष जनवरी से दिसंबर तक होगा तो बजट पेश होने का समय बदल जाएगा।
सरकारी मंत्रालयों और विभागों को सारे खर्च 31 दिसंबर से पहले करने पड़ेंगे।
आयकर रिटर्न फाइल करने की तारीख भी बदल जाएगी।
वित्त वर्ष बदलना देश के लिए अच्छा, लेकिन तैयारी जरूरी: एक्सपर्ट
चार्टर्ड अकाउंटेंट विकास जैन का कहना है कि यह अच्छा कदम होगा, लेकिन इसके लागू होने के बाद शुरुआती 2-3 साल मुश्किलें आएंगी। उसके बाद अगले 2 साल में इसके फायदे दिखना शुरू होंगे। सरकार प्लानिंग के साथ वित्त वर्ष में बदलाव करेगी तो बेहतर रहेगा नहीं तो इसका असर नोटबंदी जैसा हो सकता है।
इसके फायदे क्या होंगे ?
चार्टर्ड अकाउंटेंट विकास जैन के मुताबिक-
अंतरराष्ट्रीय स्तर की कंपनियों को इससे फायदा होगा क्योंकि कई प्रमुख देशों में वित्त वर्ष जनवरी से दिसंबर तक ही चलता है। ऐसे में कंपनियों को भारत और दूसरे देशों के लिए अलग-अलग वित्त वर्ष के हिसाब से प्लानिंग नहीं करनी पड़ेगी। उनके लिए भारत में कारोबारी तौर-तरीके आसान हो जाएंगे।
देश की अर्थव्यवस्था के आंकड़ों की दूसरे देशों के आंकड़ों से तुलना आसान हो जाएगी।
एग्रीकल्चर सेक्टर को फायदे की उम्मीद: एनालिस्ट
शेयर बाजार के टेक्निकल एनालिस्ट सुनील मिगलानी के मुताबिक-
वित्त वर्ष बदलने से सरकार को दिसंबर से पहले ही बजट की रकम खर्च करनी पड़ेगी। इससे एग्रीकल्चर सेक्टर को फायदा होने की उम्मीद है क्योंकि, कई प्रमुख खाद्य फसलों की बुवाई का समय नवंबर तक ही होता है।
वित्त वर्ष जनवरी से होने पर एक से ज्यादा देशों में कारोबार करने वाली कंपनियों को तिमाही नतीजे पेश करने में भी आसानी हो जाएगी। क्योंकि, उनके लिए भारत और दूसरे देशों में अकाउंटिंग का समय एक जैसा हो जाएगा।
वित्त वर्ष बदलने से क्या दिक्कतें होंगी ?
चार्टर्ड अकाउंटेंट विकास जैन के मुताबिक-
छोटे कारोबारियों को शुरुआत में ऑडिट और बैलेंस शीट से जुड़ी कुछ दिक्कतें आ सकती हैं। क्योंकि, जिस साल वित्त वर्ष जनवरी से शुरू होगा उससे पिछले साल में 12 की बजाय 9 महीने के हिसाब से लेखा-जोखा तैयार करना पड़ेगा।
वेतनभोगी लोग निवेश-बचत की जो प्लानिंग आमतौर पर फरवरी-मार्च में करते हैं उन्हें दिसंबर से पहले करनी पड़ेगी।
मोदी कर चुके हैं वित्त वर्ष में बदलाव का समर्थन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वित्त वर्ष में बदलाव का समर्थन किया था। उन्होंने अप्रैल 2017 में नीति आयोग की बैठक में वित्त वर्ष को एग्रीकल्चर सीजन के हिसाब से जनवरी से दिसंबर करने की जरूरत बताई थी। वित्त वर्ष में बदलाव संबंधी सुझाव देने के लिए दो साल पहले उच्च स्तरीय कमेटी भी गठित की गई थी। उसकी रिपोर्ट के बारे में जानकारी सामने नहीं आई है। मोदी ने दो साल पहले भाजपा शासित राज्यों को वित्त वर्ष में बदलाव के लिए कहा था। मध्यप्रदेश ने सबसे पहले वित्त वर्ष बदलने की घोषणा की, लेकिन यह फैसला लागू नहीं हो पाया।
152 साल पुरानी है मौजूदा वित्त वर्ष की परंपरा
अप्रैल से मार्च तक वित्त वर्ष की शुरुआत 1867 में हुई थी। वित्त मंत्रालय से जुड़ी वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने 2017 में सिफारिश की थी कि इस परंपरा को बदला जाए।
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