भोपाल. सर, आप ही बताएं आखिर हमारे बैंक खातों की बेसिक जानकारी सायबर के जालसाजों तक कैसे पहुंच रही है? यह सवाल बीते चार महीने में सायबर क्राइम भोपाल की टीम से साढ़े 8 हजार छात्र-छात्राओं में से 90 फीसदी ने पूछा। जब भास्कर ने उनके इस सवाल की पड़ताल की तो सामने आया कि बैंकों की इंटरनल शेयरिंग के कारण ग्राहकों का डाटा सायबर जालसाजों तक पहुंच रहा है।
यही कारण है कि बैंक के नाम पर कॉल करने वाले जालसाजों के पास लोगों की बेसिक जानकारी होती है। हालांकि सायबर क्राइम के संपर्क करने पर बैंक ने डाटा लीक होने की बात से ही इनकार कर दिया। सायबर एक्सपर्ट भी मानते हैं कि इसके लिए आरबीआई की एक गाइड लाइन होना जरूरी है। जब तक ग्राहकों की मर्जी के बिना उनका डेटा किसी को भी देने पर रोक नहीं होगी, तब तक इस तरह से डाटा लीक होता रहेगा।
सायबर क्राइम भोपाल की टीम ने एसपी राजेश सिंह भदौरिया के नेतृत्व में बीते चार महीने में स्कूल-काॅलेज के साढ़े 8 हजार छात्र-छात्राओं से संपर्क किया। सायबर क्राइम के बारे में जानकारी देने के बाद जब टीम ने छात्र-छात्राओं से बातचीत की, तो तीन सवाल प्रमुख रूप से सामने आए।
90%छात्रों ने पूछा-बैंक से क्यों लीक होता है हमारा गोपनीय डेटा –
टेलीकॉम कंपनियां भी दोषी
1. करीब 90 फीसदी ने बैंक से डेटा लीक होने संबंधी सवाल पूछा। इस पर सायबर क्राइम के अधिकारियों ने बैंकों से संपर्क किया, तो उन्होंने इस तरह से डेटा लीक होने की बात से इनकार कर दिया। एक्सपर्ट मानते हैं कि बैंकों की इंटरनल शेयरिंग के कारण इनडायरेक्ट रूप से डेटा जालसाज तक पहुंचता है। इसमें टेलीकॉम कंपनियां भी शामिल होती हैं। इस तरह से डेटा लीक होने को हैकर्स ‘डेटा माइनिंग’ कहते हैं।
पता सत्यापन में बैंकों ने बताई मजबूरी :
2. छात्राें का दूसरे नंबर पर सवाल था कि बैंक में कैसे फर्जी नाम पते पर खाता खुल रहे? इस पर बैंक प्रबंधन का कहना था कि सरकार के नियमानुसार 59 मिनट में खाता खोलना होता है। ऐसे में एड्रेस कैसे सत्यापित हो सकता। सायबर क्राइम के अधिकारियों ने कहा कि खाता खुलने के बाद उसकी जांच तो की ही जा सकती है। ऐसे में फर्जी पाए जाने पर उसे कैंसिल करने का अधिकार तो बैंक के पास ही है।
सोशल मीडिया पर रोक कैसे :
3. सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाले ऑरिजीनेटर की जानकारी सरकारी क्यों पता नहीं कर पाती? इस पर सायबर टीम ने बताया कि वाट्सएप जैसे सोशल साइट से कोई जानकारी नहीं मिलती है। इसके लिए पॉलिसी या कानून बनाए जाने के बाद ही कंट्रोल करना संभव हो सकेगा।
इस तरह से होती है डेटा शेयरिंग :
बैंक अपने कॉल सेंटर, क्रेडिट, फाइनेंस और बीमा देखने वाली ब्रांच काे इंटरनल डेटा देती है। इसमें ग्राहक का नाम, मोबाइल फोन नंबर और ई-मेल होता है। हालांकि यहां से खातों की जानकारी नहीं दी जाती, लेकिन एक्सपर्ट मानते हैं कि सेल को बढ़ाने के लिए ग्राहकों की कुछ निजी जानकारियां मौखिक तौर पर शेयर हो सकती है। इन ब्रांच में थर्ड पार्टी कर्मचारी होते हैं। इसी कारण इन डायरेक्ट रूप से डेटा आगे शेयर हो जाता है।
गाइडलाइन बने तभी रोक संभव :
बैंकों की इंटरनल शेयरिंग के कारण इनडायरेक्ट रूप से डाटा लीक होता है। इसे रोकने के लिए आरबीआई को गाइड लाइन बनाने की जरूरत है। जब तक ग्राहक की जानकारी के बिना उसका डेटा किसी को भी देने पर रोक नहीं लगाई जाती है, तब तक इसे रोकना संभव नहीं है। -शोभित चतुर्वेदी, सायबर एक्सपर्ट
हमने बैंकों को डेटा सुरक्षित करने के सिस्टम को दुरुस्त करने की सलाह दी है। बैंक अधिकारियों का कहना है कि 59 मिनट में खाता खोलना होता है। ऐसे में पते का सत्यापन संभव नहीं है। हमने खाता खुलने के बाद उसका सत्यापन करने की प्रक्रिया बनाने को कहा है। -राजेश सिंह भदौरिया, एसपी सायबर क्राइम
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