राजगढ जिले का भैसवामाता जी चमत्कारिक देवी धाम जहां स्‍वयं भू प्रतिमा स्‍थापित है देवी बीजासेन की

नवलोक समाचार, राजगढ, भैंसवामाताजी।
माता बिजासन का  यह मंदिर भैंसवा कलाली के  नाम से भी प्रसिद्ध है।  राजगढ़ जिले के सारंगपुर नगर से 15 किलोमीटर की दूरी पर बसे भैंसवा माताजी गांव में विराजित है माता बिजासन । ज्योतिषाचार्यो, इतिहासकारों  की  माने तो इस मंदिर का  इतिहास इस प्रका र है की आज से करीब 2600 साल वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में विरान जंगल हुआ करता था। 1200 एकेड़ में फैली इस पहाड़ी से राजस्थान के  लाखा बंजारा अपने व्यापार तथा अपने पशुओं को  चराने के  लिए इस पहाड़ी से गुजरते थे, जिनका  अस्थायी डेरा यहां से 10 की,मी दूर ग्राम सुल्तानियां में रहता था। इस चरवाहे की  टोली  के सरदार का  नाम लाखा बंजारा था, जिनके  घर को ई संतान नहीं थी। किदवंती  अनुसार लाखा बंजारा देवी माँ का अनन्य  भक्त था।
किवदंती के अनुसर एक  बार इस पहाड़ी से गुजरते वक्त लाखा बंजारा दम्पति को झाडिय़ों में एक कन्या की किलकारी  आवाज सुनाई दी। वह नवजात शिशु इस अवस्था में थी की  शायद वह 10 या 15  दिन की  दूधमुंही बालिका  है, उस कन्या को लाखा बंजारा अपने साथ डेरे में लेकर गया व उस कन्या का पालन-पोषण करने लगे। जब धीरे-धीरे वह बालिका  युवावस्था को छूने लगी तो वह भी अपने डेरे के  साथी चरवाहों के  साथ अपने पशुओं को  चराने इस पहाड़ी पर आया करती थी। अपने साथी चरवाहों से अलग वह कन्या जिसका नाम बीजासन हुआ था। अपने पशुओं को दूध तलाई नामके  स्थान पर पानी पिलाया करती थी, जबकी सभी अन्य  चरवाहे अपने पशुओं को  पास के कालीचापट तलाब में पानी पिलाते थे। अचम्भित चरवाहों ने इसकी  शिकायत लाखा बंजारा से की , आपकी  बेटी तो पशुओं को  पानी ही नहीं पिलाती है, न ही हमारे साथ तालाब में पशुओ को पानी पिलाने ले कर जाती है,

इसकी पुष्टि के लिए लाखा बंजारा ने जब झाडियो में छुप कर देखा और बीजासन का इस प्रकार का चमत्‍कार देखा की बीजासन तो तालबा से दूर पहाडी पर स्‍वयं पाताल गंगा प्रवाहित कर दूध तलाई में दूधिया जल से पशुओ को पानी पिलाती हे. इस चम्‍तकार को देख लाखा बंजारा अचंभित हो गया. उसी समय बीजासन इस स्‍थान पर स्‍नान भी कर रही थी, उसी समय बीजासन की नजर झाडियो में छुपकर बैटे अपने पिता पर पड़ी तो बीजासन धरती मां का आहव्‍हन कर धरती की गोद में समा कर समाधि ले ली.  उस स्‍थान को दूध तलाई कहा जाता है, बताया जाता है कि दुखद पिता की विलाप करती करूणा को सुन आकाशवाणी के माध्‍यम से पुन यही प्रकट होकर भक्‍तो को दुख दूर करने का वचन बिजासन ने अपने पिता को दिया था, वचन अनुसार माता बिजासन यही प्रकट  हुई इसी लिए यह बिराजित माता की स्‍थापित प्रतिमा धरती से निकलने के चलते बल्कि स्‍वयं भू प्रतिमा है.

वही बडे थानक पर माता के हाथ भी निकले हुए है.

आपको बता दे कि बंजारो का यह समूह पास के तालुका के गांव सुल्‍तानिया में रूकता था, और ज्‍यादा समय वही के पटैल परिवार के सानिध्‍य में बिताया करता था, इसी लिए आज भी सुल्‍तानिया गां को माता बिजासन का ननिहाल माना जाता है, वर्ष में एक बार हरियाली अमावस्‍या का सभी ग्राम वासी पैदल चलकर कर माता को चोला और ध्‍वज चढाते है.  जल रही अखण्ड ज्योत

माता के दरबार में अखण्ड ज्योति जल रही है। बताया जाता है की इस ज्योति को  राजा भर्तहरि द्वारा अपने गुरू गोरखनाथजी के साथ आकर जलाई गई थी। मंदिर के ठीक पीछे  एक किलोमीटर की दूरी पर  पीछे गोरखनाथजी का अखाड़ा भी है। जो यह ज्योति राजा भृतहरि ने जलाई इसकी पुष्टि करता है भैंसवा माताजी के ग्रामीणों ने इस अखाड़े पर भी कई चमत्कार होते अपने आंखों से देखे है । इस ज्योति के  काजल से आंखों की रोशनी भी आती है। यहां के  नीर से दुख-दर्द दूर होते है, माता के दरबार में चरणामृत के  रूप में नीर मिलता है, इस नीर में यहां आने वाले भक्तों के  सभी दुख-दर्द शरीरिक  रोग नष्ट होते है।

अष्टमी के अभिषेक का विशेष  महत्व

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माता बीजासन के दरबार में पूर्ण व्यवस्था से हर अष्टमी को  माता का अभिषेक मंत्रों से किया जाता है। इस दिन माता को व मन्दिर में विराजित अन्य देव गणों को चोला चढ़ाया जाता है। इस अभिषेक को  यहां कई भक्त जोड़े से अभिषेक कर दर्शन करते है, उनकी  सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

कई चमत्कारों से भरा है इतिहास

यहां पर ई चमत्कार हुए है जैसे सन् 1996 में भैंसदेही जिला सीहोर एक  कमाण्डर जीप, जो 15 यात्रियों से भरी थी, 500 फीट गहरी खाई में चली गई थी। वही सन् 1992 की  बात है एक चोर जो सण्डावता के पास मलकाना गांव का निवासी था चोरी करने की  नीयत से मंदिर में घुस गया था। उसने माता के श्रंगार का  हार चुरा लिया था, ओर वह जाने लगा उसी समय जिसकी  आंखों की  रोशनी चली गई थी। चोर द्वारा उस समय ग्रामीणों को बताए अनुसार उसकी माने  तो जब वह चोरी कर जा रहा था तो खुद भेरूजी जी महाराज ने उसे रात को आकर पकड़ा व उसकी आँखों की रोशनी उसी समय चली गई रात भर पहाड़ी पर वह भटकता रहा और सुबह वह पुजारियों के हाथ लगा बाद में उसके  द्वारा माताजी के सामने अपनी गलती कबूल करने के  बाद  उसे नई रोशनी मिली ।

दानपेटी से मिली विदेश करेंसी…

इस दरबार में लगी दानपेटी से कई बार विदेश करेंसी भी मिली है, जो यहां विदेशियों की  आने पुष्टि होती है  2005 में जनपद पंचायत द्वारा खोली गई दानपेटी में नेपाल, म्यामार, भुटान, आस्ट्रेलिया सहित आठ देशों की  मुद्राएं मिली थी।

धरती की  गोद से प्रकट हुई बिजासन

लाखा बंजारा बहुत परेशान हो गए। मान-मन्नत की  तो बीजासन ने अपने पिता को भविष्य में इसी स्थान से लोगों के दुख-दर्द मिटाने का  वचन दिया वर्षो बाद बीजासन माता बड़ी गादी पर अपने हाथ तथा मंदिर के  प्रमुख स्थान पर धरती माँ की गोद से प्रकट हुई और अब इसी स्थान से लाखों श्रृद्धालुओं के  दुख दूर कर  रही है। आस्था विश्वास का केन्द्र जाने जाने वाले मातारानी भैंसवा दरबार जो म.प्र. के अलावा राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र सहित विदेशों में भी माँ भैंसवामाता दरबार की  गाथाऐं सुनाई जाती है।    इस स्थान पर वर्ष में दो बार मेले का आयोजन जनपद पंचायत सारंगपुर व ग्राम पंचायत भैंसवामाता के पदस्थ अधिकारियों की देख रेख में सम्पन्न कराया जाता है। माघ माह की बसंत पंचमी को माता रानी का ध्वज सरपंच व विधायक, सीईओ द्वारा विशेष पूजा अर्चना कर झंडा गाढ़ा जाता है। इसी दिन से पशु मेले का आरंभ भी माना जाता है। जो माघ माह की पुर्णिमा को चावड़ी खोलकर सम्पन्न होता है इसी रात्रि को माता रानी अपने भक्तों व गांव वासियों के हाल चाल जानने डोली में बैठकर शाही ठाठ-बाट के साथ भैंसवामाता गांव के अंदर श्री राम मंदिर में पहुंचती है, जहां महाआरती कर सुबह ५ बजे वापस दरबार में पहुंच जाती है।  ब‍ता दें कि राजगढ जिले के इस देवी धाम के विकास कार्यो व व्यवस्था का जिम्मा यहां संचालित माँ बिजासन सेवा न्यास के हाथों में है । ट्रस्ट (न्यास ) के अध्यक्ष खुद जिला कलेक्टर है और तहसीलदार सारंगपुर यह के पदेन सचिव.

 

 

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