नई दिल्ली. केंद्र सरकार ने 10 प्रमुख सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को किसी भी व्यक्ति या संस्था के कम्प्यूटरों में मौजूद डेटा की जांच करने का अधिकार दे दिया है। देश की सुरक्षा के लिए इसे महत्वपूर्ण बताया गया है। गृह मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना के मुताबिक, प्रमुख एजेंसियां किसी भी व्यक्ति के कम्प्यूटर से जेनरेट, ट्रांसमिट या रिसीव हुए और उसमें स्टोर किए गए किसी भी दस्तावेज को देख सकेंगी। यह अधिकार आईटी एक्ट की धारा-69 के तहत दिया गया है। कांग्रेस ने इस पर कहा कि अबकी बार मोदी सरकार ने निजता पर वार किया है।
गृह मंत्रालय के नोटिफिकेशन के मुताबिक सभी सब्सक्राइबर, सर्विस प्रोवाइडर या कंप्यूटर रिसोर्स से जुड़े व्यक्तियों को जरूरत पड़ने पर जांच एजेंसियों का सहयोग करना पड़ेगा। ऐसा नहीं करने पर 7 साल की सजा और जुर्माना लग सकता है।
इन 10 एजेंसियों को मिला जांच का अधिकार
इंटेलीजेंस ब्यूरो
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो
प्रवर्तन निदेशालय
सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज
डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस
सीबीआई
एनआईए
कैबिनेट सचिवालय (रॉ)
डायरेक्टोरेट ऑफ सिग्नल इंटेलीजेंस
दिल्ली पुलिस कमिश्नर
जनता की निजता पर हमला: कांग्रेस
केंद्र सरकार के इस फैसले को कांग्रेस ने लोगों की निजता पर हमला बताया। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने भाजपा के नारे की तर्ज पर ही कहा कि अबकी बार, निजता पर वार! जनता की जासूसी = मोदी सरकार की निन्दनीय प्रवृत्ति।
माकपा नेता सीताराम येचुरी ने कहा- यह सरकार हर भारतीय को अपराधी क्यों मानती है? हर नागरिक की जासूसी का आदेश देना असंवैधानिक है। यह टेलीफोन टैपिंग गाइडलाइन्स, प्राइवेसी जजमेंट और आधार पर आए अदालती फैसले का भी उल्लंघन है।
पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने मोदी सरकार के इस फैसले को मुक्त समाज के लिए हानिकारक बताया है।
क्या है आईटी एक्ट की धारा-69 ?
इसके मुताबिक अगर केंद्र सरकार को लगता है कि देश की सुरक्षा, अखंडता, दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण रिश्त बनाए रखने या अपराध रोकने के लिए किसी डेटा की जांच की जरूरत है तो वह संबंधित एजेंसी को इसके निर्देश दे सकती है।
Comments are closed.