मसालों से मिसालों तक गुलाटी जी – राकेश अचल
मेरे एक लेखक मित्र ने एमडीएच के धर्मपाल गुलाटी पर एक अयाचित टिप्पणी की तो मुझे पीड़ा हुई .उनका मानना था कि गुलाटी जी ने ऐसा कुछ नहीं किया कि उन्हें पद्मभूषण जैसा बड़ा नागरिक सम्मान दे दिया गया .हमारे लेखक मित्र समझते हैं कि पदम् सम्मान केवल लेखकों और कलाकारों और नेताओं के लिए ही बने हैं,लेकिन मै समझता हूँ कि इन सम्मानों के हकदार धर्मपाल गुलाटी जैसे शलाका पुरुष भी हैं जिनका पुरषार्थ आज मिसाल देने लायक है .उन्होंने भारतीय मसालों को मिसालों तक पहुंचा दिया .
भारत के हर हिस्से में मसाले आम जिंदगी का हिस्सा हैं. जिस अंचल में जो मसाला पैदा होता है उस अंचल में तो उसका इस्तेमाल होता ही है लेकिन वे मसाले देश के दूसरे हिस्सों में भी इस्तेमाल किये जाते हैं .बिना मसालों के जीवन नीरस होता है .मसाले जीवन का अविभाज्य अंग हैं .बचपन में हम सबने देखा होगा कि ये मसाले हर गरमी में खरीदे ,सुखाये और कूटे-पीसे जाते थे .घर की वरिष्ठ महिलाओं के तजुर्बों में मसालों के अनुपात छिपे होते थे. हार भोजन में अलग मसाला इस्तेमाल किया जाता था .मसालों की महिमा बहुत अधिक थी .
पहले रेडीमेड मसाले नहीं मिलते थे.उन्हें सुखाकर,कूट-पीसकर और छानकर इस्तेमाल के समय ही तैयार किया जाता था .जिस रसोई में जितने मसले होते थे उस रसोई को उतना समृद्ध समझा जाता था .मसालों की खुशबू से रसोईयां महकती रहतीं थी .हर मसाले की अलग सुगंध थी और अलग-अलग अवसरों पर प्रकट होती थी .मसालों का कोई धर्म नहीं था लेकिन वे जाति विशेष में लोकप्रिय जरूर थे .लेकिन उत्तर के मसाले दक्षिण में और दक्षिण के मसाले उत्तर में खूब इस्तेमाल किये जाते थे .मसालों कि फौरी कुटाई के लिए हर रसोई में एक खलबत्ता होता था .कहीं लोहे का तो कहीं पीतल का .सिल-बट्टा तो होता ही था .मसलों कि कुटाई-पिसाई की भी अपनी कला थी.कौन सा मसाला ,कितना मोटा या बारीक पीसना,कूटना है ये भी तय था .कुछ किस्मत वाले मसाले खड़े इस्तेमाल किये जाते थे तो कुछ की जमकर कुटाई होती थी .
अब आप पूछिए कि मसालों की दुनिया में स्वर्गीय हो चुके धर्मपाल गुलाटी की क्या भूमिका थी ?तो आप जान लीजिये कि ‘महाशिया दि हट्टी’ के जरिये इन मसालों को आमजन के लिए इतना सहज और सुलभ बना दिया कि आप बिना किसी झंझट के जिस मसाले का इस्तेमाल करना चाहें फटाफट कर लें,न बीनने का झंझट और न कूटने-पीसने की समस्या .गुलाटी जी ने मसालों को हर रसोई के लिए हर मौसम में और बड़े ही सुविधाजनक तरिके से उपलब्ध करा दिखाया .मसालों की दुनिया में पैक बंद मसालों की उपलब्धता किसी क्रान्ति से कम नहीं है .और इसके लिए उन्हें दिए गए पदम् विभूषण सम्मान पर उंगली नहीं उठाई जा सकती .
धर्मपाल गुलाटी उस संकल्प का नाम है जिसने मसालों को भारत की सीमाओं से बाहर जहाँ भी भारतीय रहते हैं वहां तक पहुंचाया. देश में उनकी मसाला बनाने की 18 फैक्ट्रियां हैं और वे शून्य से दो हजार करोड़ रूपये के कारोबार तक पहुँच गए .केवल कविता या व्यंग्य लिखकर आप किसी देश के हार घर में नहीं पहुँच सकते लेकिन धर्मपाल गुलाटी अपने मसालों के जरिये हर घर तक जा पहुंचे ,इसलिए उनका योगदान नकारा ही नहीं जा सकता और जो ऐसा सोचते हैं वे क्षमा और दया के पात्र हैं ,उन्हें क्षमा किया जाना चाहिए .
धर्मपाल गुलाटी के बारे में कम जानने वालों के लिए ये सूचना आवश्यक है कि खुद पांचवी तक पढ़े धर्मपाल शिक्षा के महत्व को खूब समझते थे इसलिए उन्होंने कई स्कूल भी खोले थे. जिस अस्पताल चनन देवी में उनका इलाज चल रहा था वह भी उनका ही बनाया हुआ अस्पताल था. एमडीएच मसाला के एक बयान के अनुसार, धर्मपाल गुलाटी अपने वेतन की लगभग 90 प्रतिशत राशि दान दे दिया करते थे.कौन सा लेखक धर्मपाल गुलाटी की बराबरी कर सकता है भला ?
धर्मपाल गुलाटी ने मसाला कारोबार को एक नयी दिशा दी.आज देश में उनके अनेक प्रतिद्वंदी हैं लेकिन उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.वे अपने उत्पादों के विज्ञापन खुद करते थे.ये उनके आत्मविश्वास और व्यक्तित्व की शक्ति ही थी ,इससे ईर्ष्या करना किसी लेखक के लिए आसान है लेकिन उन जैसा पुरषार्थ दिखाना बहुत कठिन है .गुलाटी ने प्रमाणित किया कि शीर्ष सम्मान हासिल करने के लिए मोटी पोथियाँ लिखना ही आवश्यक नहीं हैं कुछ करके दिखाना भी आवश्यक है .कोई माने या न मने लेकिन मै मानता हूँ कि धर्मपाल गुलाटी जैसे व्यक्तियों की जीवन गाथाएं प्रेरक हो सकतीं हैं और इन्हें सम्पादित कर हमारे पाठ्यक्रमों का अंग बनाया जाना चाहिए .
मसालों से मिसालों तक पहुंचे धर्मपाल गुलाटी देश के उन असंख्य छुद्र राजनेताओं से तो लाख गुना ज्यादा भले हैं सिर्फ लौटना जानते हैं. नेताओं का परुषार्थ लूट होता है लेकिन धर्मपाल जैसे लोग लूटकर जाते हैं .कोई माने या न मने लेकिन धर्मपाल गुलाटी मसालों की दुनिया में वैसे ही हैं जैसे कहानियों की दुनिया में चंद्रधर शर्मा गुलेरी .गुलेरी जी ‘उसने कहा था ‘जैसी एक कहानी से आज तक याद किये जाते हैं उसी तरह धर्मपाल गुलाटी को भी मसालों की दुनिया में एक युग तक एमडीएच के मसालों के जरिये याद किया जाएगा .
‘महाशिया दि हट्टी’ को एमडीएच बनाने में धर्मपाल गुलाटी की उम्र बीत गयी. उन्हें पद्मभूषण भी 97 वर्ष की उम्र में मिला
.उनकी इस उपलब्धि पर गर्व करने वाले गर्व करते हैं और ईर्ष्या करने वाले ईर्ष्या .लेकिन मेरे मन में वे हमेशा एक प्रेरक व्यक्ति की तरह उपस्थित हैं .विनम्र श्रृद्धांजलि .
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