नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे मौजूदा तनाव के बीच विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप के बयान से ये अटकलें लगने लगीं कि क्या भारत सिंधु नदी समझौता तोड़ देगा. क्या भारत 1960 में हुई इस संधि की अनदेखी करते हुए सिंधु का पानी रोकेगा? भारत और पाकिस्तान के बीच जंग का बिगुल बजाने के उत्सुक लोगों को ये बात भले ही उत्साहित करने वाली लगे, लेकिन सिंधु का पानी रोकना न तो व्यवहारिक विकल्प है और न ही ये आर्थिक रूप से संभव होगा.
56 साल पुरानी सिंधु जल संधि है
भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के बीच ये संधि 1960 में हुई. इसमें सिंधु नदी बेसिन में बहने वाली 6 नदियों को पूर्वी और पश्चिमी दो हिस्सों में बांटा गया. पूर्वी हिस्से में बहने वाली नदियों सतलज, रावी और ब्यास के पानी पर भारत का पूर्ण अधिकार है, लेकिन पश्चिमी हिस्से में बह रही सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी का भारत सीमित इस्तेमाल कर सकता है. संधि के मुताबिक भारत इन नदियों के पानी का कुल 20 प्रतिशत पानी ही रोक सकता है. वह चाहे तो इन नदियों पर बांध बना सकता है, लेकिन उसे रन ऑफ द रिवर प्रोजेक्ट ही बनाने होंगे, जिनके तहत पानी को रोका नहीं जाता. भारत कृषि के लिए इन नदियों का इस्तेमाल कर सकता है. यहां यह समझना ज़रूरी है कि आखिर सिंधु नदी का इतना महत्व क्यों है. सिंधु दुनिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक है. इसकी लंबाई 3000 किलोमीटर से अधिक है यानी ये गंगा नदी से भी बड़ी नदी है. सहायक नदियों चिनाब, झेलम, सतलज, राबी और ब्यास के साथ इसका संगम पाकिस्तान में होता है. सिंधु नदी बेसिन करीब साढ़े ग्यारह लाख वर्ग किलोमीटर में फैला है. यानी उत्तर प्रदेश जैसे 4 राज्य इसमें समा सकते हैं. सिंधु और सतलज नदी का उद्गम चीन में है, जबकि बाकी चार नदियां भारत में ही निकलती हैं. सभी नदियों के साथ मिलते हुए विराट सिंधु नदी कराची के पास अरब सागर में गिरती है.
पाकिस्तान के दो तिहाई हिस्से पर सिंधु का प्रभाव
भारत को सिंधु नदी घाटी में ये फायदा मिलता है कि इन नदियों के उद्गम के पास वाले इलाके भारत में पड़ते हैं. यानी नदियां भारत से पाकिस्तान में जा रही हैं और भारत चाहे तो सिंधु के पानी को रोक सकता है. पाकिस्तान के दो तिहाई हिस्से में सिंधु और उसकी सहायक नदियां बहती हैं, यानी उसका करीब 65 प्रतिशत भूभाग सिंधु रिवर बेसिन पर है. पाकिस्तान ने इस पर कई बांध बनाए हैं, जिससे वह बिजली बनाता है और खेती के लिए इस नदी के पानी का इस्तेमाल होता है. यानी पाकिस्तान के लिए इस नदी के महत्व को कतई नकारा नहीं जा सकता.
सिंधु समझौते तोड़ने में कई कठिनाइंया
मौजूदा हाल में पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए जिस तरह से सिंधु के पानी को रोकने की बात की जा रही है वह कहने को तो मुमकिन है, लेकिन व्यवहारिक कठिनाइयां और उसके नतीजे भारत के पक्ष में नहीं जाते. कहना गलत नहीं है कि इन नदियों के बीच पानी का समंदर है जिसे रोक पाना कोई आसान काम नहीं. इसके लिए भारत को बांध और कई नहरें बनानी होंगी, जिसके लिए बहुत पैसे और वक्त की ज़रूरत होगी. इससे विस्थापन की समस्या का समाना भी करना पड़ सकता है और इसके पर्यावरणीय प्रभाव भी होंगे.
भारत की छवि के लिए नुकसानदायक
दूसरी ओर भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी बट्टा लगेगा. अब तक भारत ने इस इंटरनेशनल ट्रीटी का कभी भी उल्लंघन नहीं किया. अगर भारत अब पानी रोकता है तो पाकिस्तान को हर मंच पर भारत के खिलाफ बोलने का एक मौका मिलेगा और वह इसे मानवाधिकारों से जोड़ेगा. चीन से कई नदियां भारत में आती हैं और आने वाले दिनों में चीन इस मुद्दा बनाते हुए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. पड़ोसी देशों बांग्लादेश और नेपाल के साथ भारत की नदी जल संधियां हैं और इन पर भी इसका असर पड़ सकता है। अभार – एनडीटीवी