राज पाठक नई दिल्ली।
केन्द्र सरकार द्वारा लाए जा रहे तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का विरोध तेज हो गया है .. पंजाब,हरियाणा, राजस्थान,उत्तरप्रदेश से किसान दिल्ली पहुँच गए हैं, विरोध की यह आग अन्य राज्यों तक पहुँच रही है.. मध्यप्रदेश,उत्तराखंड, महाराष्ट्र के किसान भी कूच कर रहे हैं,कई राज्यों के किसान और किसान संगठन आन्दोलन के समर्थन में उठ खड़े हो रहे हैं… भारतीय किसान यूनियन,किसान संघ,राष्ट्रीय किसान महासंघ,किसान बचाओ मोर्चा, जय किसान, किसान मजदूर संघर्ष कमेटी,संयुक्त किसान मोर्चा समेत तमाम किसान संगठन नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं.. किसान संगठनों का मानना है कि ये कानून किसान हित में नहीं है, सरकार कॉरपोरेट कंपनियों का हित साध रही है.. किसानो को डर है कि वे कॉरपोरेट कंपनियों के चंगुल में फँस जाएंगे और उनकी जमीन निजी कंपनियों के हाथों में चली जाएँगी .. नए कानून लागू होने से फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (ऍमएसपी) सरकार ख़तम कर देगी.. किसानों की फसलें सीधे बाजार याने निजी कंपनियों द्वारा खरीद होने से मंडियां बंद हो जाएँगी और धीरे-धीरे किसान पूंजीपतियों के चंगुल में फंस जाएगा..
उधर सरकार कृषि कानूनों को रद्द करने के मूड में बिलकुल नहीं है,कृषि कानूनों को खत्म करने पर सरकार ने विराम लगा दिया है.. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि फ़सल का न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी रहेगा और मंडियां बंद नहीं की जाएगी..नए कानून लागू होने से कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी जिसका लाभ किसानों को मिलेगा…निजी कंपनियों द्वारा उपज खरीदी से किसानों की आमदनी बढ़ जाएगी…मोदी सरकार का दावा है कि ये तीनों विधेयक किसानों के हित में हैं ,ये विधेयक कनून बनने के बाद किसान अपनी फसल कहीं भी , किसी को भी उचित दामों पर बेंचने के लिए स्वतंत्र होंगे.. अभी राष्ट्रपति को इन तीनो विधेयकों पर हस्ताक्षर करना है उसके बद ही ये विधेयक कानून का रूप ले पांएगे… किसान सरकार की इन दलीलों पर विश्वास नहीं कर रहे हैं और कानूनों को रद्द करने पर अड़े हैं…
बीते दिनों मोदी सरकार ने संसद में तीन कृषि विधेयक पास कराए , इन तीनों विधेयकों के बारे में जानने कि कोशिश करते हैं और यह भी देखेंगे कि आखिर में इन कानूनों में ऐसा क्या प्रावधान है कि किसानों को ये कानून नागवार गुजर रहे हैं..
१. कृषक उपज व्यापर और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक २०२० – इस बिल में प्रावधान है कि किसान अपनी उपज मंडी के बाहर बेंचने के लिए स्वतंत्र होंगे , किसान अपनी फसल को राज्य के बाहर अन्य राज्यों में बेंचने के लिए स्वतंत्र होगा.. इस कानून के पक्ष में तर्क यह है कि मंडियों के बाहर निजी कंपनियों को फसल बेंचने से खरीदारों में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी जिससे किसानो को बेहतर दाम मिलेंगे…दूसरे राज्यों में फसल बेचने की अनुमति मिलने से दो राज्यों के बीच व्यापार को बढ़ावा मिलेगा … किसान अपनी फसल सीधे ग्राहकों जैसे रेस्तरां,फ़ूड प्रोसेसिंग कंपनियों को भी बेंच सकता है..
इस कानून के विरोध में ये तर्क दिए जा रहे हैं कि कृषि बाजार में निजी कंपनियों के उतरने से मंडियां धीरे-धीरे बंद हो जाएँगी ,दूसरे राज्यों में फसल बेंचने की स्वतंत्रता से भी मंडियों पर असर पढ़ेगा क्योंकि राज्य मंडी शुल्क प्राप्त नहीं कर सकेंगे जिससे राज्यों को राजस्व का नुकसान होगा और मंडियां बंद होंगी .. निजी कंपनियां इसका लाभ उठाने लगेगी और अपने फायदे के लिए मनमाने दामों पर किसानों से उनकी उपज खरीदेगी, जिससे किसानों को नुकसान होगा… इस बिल में निजी कंपनियों की खरीदी के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का प्रावधान नही है ,इस कारण से न्यूनतम समर्थन मूल्य याने ऍमएसपी बंद हो जाएगी , जो कि किसानों के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदायक होगा .. जहाँ तक किसानों की फसल दूसरे राज्यों में बेंचने की बात है वह ज्यादा संभव नहीं लग रही है क्योंकि , एक ओर प्रकृति की मार और कर्ज से परेशान किसान महँगी मॉल ढुलाई याने ट्रांसपोर्टेशन और मजदूरी वहन नहीं कर सकेंगे ..
२०१५-१६ में हुई कृषि गणना के मुताबिक देश के ८६ प्रतिशत किसानो के पास छोटी जोत यानि दो से तीन एकड़ की जमीन है ,ऐसे में किसान राज्य के बाहर फसल बेंचने में सक्षम नही हो पाएँगे ..
२.कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक २०२०- इस बिल में परिकल्पना की गई है कि निजी क्षेत्र की भागीदारी को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एग्रीमेंट व्यवस्था याने अनुबंध कृषि के माध्यम से बढ़ावा दिया जाए… कॉर्पोरेट कंपनियां किसानों से खेती के लिए अनुवंध करेंगी .. किसानों को उच्च तकनीक ,प्रौदौगिकी ,गुणवत्ता के बीज ,फसल स्वस्थ निगरानी,ऋण सुविधा और फसल बीम सुविधा उपलब्ध कराई जाए ,यह सब अनुबंध के तहत किया जाएगा…यह कानून कृषि करारों पर राष्ट्रीय फ्रेमवर्क के लिए है..कृषि उत्पादों की बिक्री, फर्म सेवा, प्रोसेसर,बिक्रेताओं के साथ किसानो को जुड़ने के लिए सशक्त करता है..
इस कानून के विरोध में तर्क यह है कि खेती के लिए निजी कंपनियों से अनुबंध करने के बाद पूंजीपति ज्यादा मुनाफा के चक्कर में अनुबंध में किसानों के हितो के साथ खिलवाड़ करेंगे..किसानों को डर है कि धीरे-धीरे पूंजीपति जमीनों पर कब्ज़ा कर लेंगे और किसान जमीन होते हुए भी बेसहारा हो जायेंगे..किसानों को डर है कि कहीं कॉर्पोरेट आधुनिक भारत के ‘आधुनिक जमींदार’ न बन जाएँ .. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में विवाद की स्थिति में किसानों को कोर्ट जाने की मनाही है..किसान सिर्फ एस डी एम के पास जा सकता है ,विवाद कि स्थिति में कंपनियों को फ़ायदा होगा.. ऐसे में लगता है कि सरकार किसानों के अधिकारों को सीमित कर रही है और कॉर्पोरेट को खुला छोड़ रही है..अनुबंध में किसानों का पक्ष कमजोर हो सकता है ,वे अपनी फसलों की कीमतों का निर्धारण नहीं कर सकेंगे … महत्वपूर्ण यह भी है कि ,इस कृषि कानून में शंका है कि छोटे किसान जो भारत में ८६ प्रतिशत के करीब हैं कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से कैसे जुड़ पाएंगे क्योंकि कंपनियां ऐसे किसानों से परहेज कर सकती हैं..
३. आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक २०२०- इस प्रस्तवित कानून में अवश्यक वस्तुओं में संशोधन किया गया है,जिससे नए सिरे से भण्डारण आदि में परिवर्तन किया जा सके.. इस कानून के तहत आवश्यक बस्तुओं की सूचि से अनाज ,दाल ,तिलहन,प्याज,आलू ,खाद्यतेल. को आवश्यक बस्तुओं से हटाने का प्रावधन है, इन बस्तुओं की स्टॉक की सीमा समाप्त हो जाएगी..स्टॉक की सीमा समाप्त होने से बड़ी कंपनियों को उपज के भण्डारण की छूट मिल जाएगी,जिससे जमाखोरी और कालाबाजारी बढ़ने की सम्भावना है.किसानों को वही सस्ते बीज महंगे में मिल सकते हैं..
बाजार का उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने का होता है,निजी कंपनियां ज्यादा मुनाफा कमाने के मकसद से ही बिजनेस करती हैं,सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना का अभाव होता है.. विपक्ष का आरोप भी यही है .. कांग्रेस ,वाम दल ,टीएमसी ,सपा ,आप,अकाली दल और अन्य पार्टियाँ इन कानूनों के विरोध में किसनों के साथ खड़ी हैं.. विपक्ष का आरोप है कि केन्द्र सरकार कानून लाकर देश में खेती को भी कॉर्पोरेट घरानों को सौंपना चाहती है..सरकार मंडी व्यवस्था ख़त्म कर एमएसपी से किसानों को वंचित करना चाहती हैं …प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विपक्ष पर किसानों को भ्रमित करने और कृषि कानूनों के सम्बन्ध में गलत जानकरी देने का आरोप लगाया है.. अब सवाल यह है कि यदि विपक्ष ने किसानों को भ्रमित किया है तो इस भ्रम को दूर करना सरकार का काम है.. सरकार को अन्नदाता की चिंताओं का समाधान करना चाहिए और बिना लागलपेट के उनके हितों की रक्षा भी करना चाहिए.. किसानों को आतंकवादी कहने ,खालिस्तानी होने जैसे दुष्प्रचार पर लगाम लगाना होगा.. सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में हुई बातचीत ही इस गतिरोध को दूर कर सकती है..
(राज पाठक नई दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं )
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